स्वामी दयानंद सरस्वती के अनमोल विचार
आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को टंकारा में मोरबी (मुम्बई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था। वह आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक, ईश्वर भक्त व देशभक्त थे। उन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल विवाह तथा सती प्रथा तथा अंधविश्वास और रूढ़ियों-बुराइयों का निर्भय होकर कड़ा विरोध किया। वह दलितोद्धार के हिट में थे।
उन्होने महिलाओं के उचित अधिकार हेतु महत्वपूर्ण योग्यता निभाई। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया। उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए महत्पूर्ण भूमिका भी निभाई। उनका एक ही सिद्धांत था “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” अर्थात सारे संसार को श्रेष्ठ मानव बनाओ। 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर, राजस्थान में उनकी मृत्यु हो गई। उनके अंतिम शब्द थे “प्रभु! तूने अच्छी लीला की। आपकी इच्छा पूर्ण हो।” आइये आज हम इस महापुरुष के अनमोल विचारों को (Swami Dayanand Saraswati Quotes) जानते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं।
Swami Dayanand Saraswati Quotes
“कोई मूल्य तभी मूल्यवान है जब मूल्य का मूल्य स्वयं के लिए मूल्यवान हो।”
# “हानि से निपटने में सबसे जरूरी चीज़ है उससे मिलने वाले सबक से सीखना और न दोहराना। यह आपको सही मायने में विजेता बनता है।”
# “जिस इंसान में अहंकार ने वास किया, उस इंसान का विनाश होना निश्चित है।”
# – “काम करने से पहले सोचना बुद्धिमानी, काम करते हुए सोचना सतर्कता, और काम करने के बाद सोचना मूर्खता है।”
# “दुनियाँ को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिये आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा।”
# “दुनिया में सबसे बढ़िया संगीत यंत्र इंसान की आवाज़ है।”
# “ये ‘शरीर’ ‘नश्वर’ है, हमें इस शरीर के जरीए सिर्फ एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का कि, ‘मनुष्यता’ और ‘आत्मविवेक’ क्या है।
# “ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो, सबसे उच्च कोटि की सेवा है।”
“हर इंसान को अपना पल पल आत्मचिंतन में लगाना चाहिऐं क्योंकि हर क्षण हम परमेश्वर द्वारा दिया गया समय खो रहे हैं।”
# “आप दूसरों को बदलकर स्वम को आज़ाद नहीं कर सकते, क्योंकि यह ऐसे काम नहीं करता। दूसरों को स्वीकार करिए और आप मुक्त हो जायेंगे।”
# “वेदों मे वर्णीत सार का पान करने वाले ही यह जान सकते हैं कि ‘जिन्दगी’ का मूल बिन्दु क्या है।”
# “मनुष्य की विद्या उसका अस्त्र है, धर्म उसका रथ, सत्य उसका सारथी और उसकी भक्ति ‘रथ के घोड़े’ होते हैं।”
# “जो व्यक्ति सबसे कम ग्रहण करता है और सबसे अधिक योगदान देता है वह परिपक्कव है, क्योंकि जीने मेंही आत्म-विकास निहित है।”
# “क्रोध का भोजन ‘विवेक’ है, अतः इससे बचके रहना चाहिए, क्योकी विवेक नष्ट हो जाने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है।”
# “जो लोग दूसरों की मदद करते हैं वो एक तरह से भगवान की मदद करते हैं।”
# “गीत व्यक्ति के मर्म का आह्वान करने में मदद करता है। बिना गीत के, मर्म को छूना मुश्किल है।”
# “अहंकार आने पर मनुष्य के भीतर वो स्थितआ जाती है, जब वह अपना आत्मबलऔर और आत्मज्ञानको खो देता है।”
# “माफ़ कर देना हर किसी के बस की बात नहीं है। क्योंकि यह विवेकशील लोगों को काम होता है।”
# “प्रबुद्ध होना ; ये कोई घटना नहीं हो सकती। जो कुछ भी यहाँ है ; वह अद्वैत है। ये कैसे हो सकता है? यह स्पष्टता है।”
# “मानव जीवन मे ‘तृष्णा’ और ‘लालसा’ यह दोनों दुखः के मूल कारण है।”
# “ईष्या से मनुष्य को हमेशा बचना चाहिए। क्योकि ये व्यक्ति को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है।”
# “उपकार बुराई का अंत करता है, सदाचार की प्रथा का आरंभ करता हैं और लोक कल्याण एवं सभ्यता में योगदान देता है।”
# “क्योंकि एक इंसान सहानुभूति के साथ संपन्न होता है, वह उल्लंघन करता है अगर वह उन लोगों तक नहीं पहुंचता है जिन्हें देखभाल की आवश्यकता होती है।”
# “मद मनुष्य की वो स्थिति या दिशा है, जिसमे वह अपने मूल कर्तव्य से भटक कर विनाश की ओर चला जाता है।”
# “जब एक इंसान अपने क्रोध पर विजय हांसिल कर लेता है, वासना को नियंत्रित कर लेता है, यश की इच्छा को त्याग देता है, मोह माया से दूर हो जाता है तब उसके अंदर अद्भुत शक्तियाँ उत्तपन होने लगती हैं।”
# “किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है। इसलिए इसका परिणाम होगा। यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं।”
# “संस्कार मानव के आचरण’ की नीव होती है। ‘संस्कार जितने गहरे होते हैं, उतना ही अडिग मनुष्य अपने कर्तव्य पर, अपने धर्म पर, सत्य पर और न्याय पर होता है।”
# “उस सर्वव्यापक ईश्वर को योग द्वारा जान लेने पर हृदय की अविद्यारुपी गांठ कट जाती है, सभी प्रकार के संशय दूर हो जाते है और भविष्य में किये जा सकने वाले पाप कर्म नष्ट हो जाते है अर्थात ईश्वर को जान लेने पर व्यक्ति भविष्य में पाप नहीं करता।”
# “लोगों को भगवान् को जानना और उनके कार्यों की नक़ल करनी चाहिए। पुनरावृत्ति और औपचारिकताएं किसी काम की नहीं हैं।”
# “निरीह सुख सत्कर्म करने और नेक तरीके से धन को अर्जित करने से प्राप्त होता है।”
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